जानिए बीमारियों का सबसे बड़ा कारण Major causes of illness and disease
बहुत से लोग जीवाणु को बीमारियों का कारण मानते हैं लेकिन प्राकृतिक चिकित्सा में बीमारियों का कारण जीवाणु नहीं है ।
शारीरिक गतिविधियां बिलकुल कम हो गई है और आज हर कोई चाहता है कि बैठे-बैठे ही सब काम हो जाए। तभी तो हर कोई अपना हर काम फोन पर ही कर लेना चाहता है जैसे कि शॉपिंग।
वह बैठे-बैठे ही आर्डर कर देता है और सब कुछ उसके घर आ जाता है जबकि पहले इन सब चीजों के लिए वह घर से बाहर निकलता तो उसका चलना-फिरना, चढ़ना-उतरना सब होता था पर यह सब बिलकुल न के बराबर होता है और यही बीमारियों का सबसे बडा कारण बन गया है।
दूसरी ओर आज सभी बुरी आदतें जैसे धूम्रपान, शराब को लोग अपने स्टेटस से जोड के देखते हैं और सीढियां चढना भी इनकी आदतों में शुमार नहीं है तभी तो आज डाक्टर को निर्देश देना पडता है कि सुबह की सैर करें, लिफ्ट का इस्तेमाल न करें आदि। पर लोग इन सब आदतों के चंगुल में बुरी तरह से फंस गए हैं जो उन्हें बीमार कर रही है।
हमारी इसी खराब जीवनशैली का नतीजा है कि हम आज मोटापा, टाइप 2 मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोगों और कैंसर जैसी बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। डायबिटीज और स्ट्रेस डिसऑर्डर जैसी बीमारियां भी आजकल आम हो गई है।
अंतर्राष्ट्रीय मधुमेह महासंघ के अनुसार, भारत में 2017 में लगभग 72,946,400 मधुमेह के मामले देखे गए हैं। वर्ष 2025 तक यह अनुमान लगाया जाता है कि मधुमेह से पीड़ित दुनिया के 30 करोड़ वयस्कों में से तीन-चौथाई गैर-औद्योगिक देशों में होंगे।
उच्च रक्त चाप, हृदय रोग की समस्याएं, मधुमेह, जोड़ों का दर्द, गुर्दे का संक्रमण, कैंसर, क्षयरोग (टीबी) और आंखों की समस्याएं आदि कुछ रोग हैं, जो बहुधा वरिष्ठ नागरिकों को परेशान करते हैं। इन बीमारियों का उचित और कई लंबे समय तक इलाज करने की जरुरत पड़ती है। वरिष्ठ नागरिकों की चिकित्सा के लिए एलोपैथिक से लेकर प्राकृतिक चिकित्सा तक कई तरह के उपचार किए जाते हैं।
इस भाग में, हम आपको वरिष्ठ नागरिकों को होने वाली आम स्वास्थ्य समस्याओं, उनके निवारण के सुझाव और चिकित्सा केंद्रों के बारे में सूचना प्रदान करेंगे। यदि आप वृद्ध हैं तो आपको ऐसी किसी बीमारी के शुरू होने को रोकने के लिए नियमित रूप से चिकित्सा जांच कराना जरूरी है। एक बार रोग लग जाने पर स्वस्थ होने में बहुत समय लग जाता है। इससे अनावश्यक रूप से खर्च और तनाव होता है। इसलिए कहा जाता है कि परहेज सबसे अच्छा उपचार है।
यदि आप डॉक्टर के निदान से संतुष्ट नहीं है तो किसी दूसरे अथवा तीसरे डॉक्टर की राय लेना हमेशा अच्छा होता है। नकली अथवा बेईमान डॉक्टरों से बच कर रहें जो पैसा कमाने के चक्कर में दूसरे डॉक्टर की राय को गलत बताते हैं। सरकारी अस्पतालों में सही निदान की गारंटी होती है और उन निजी अस्पतालों की अपेक्षा कम पैसा लगता है। कोई भी कदम उठाने से पहले चाहे दवाई खाने की बात हो अथवा आहार सेवन की, डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।
गठिया और अस्थिभंजन (आर्थराइटिस एण्ड ऑस्टियोपोरसिस)
जोड़ों की सूजन को गठिया कहते हैं। यह 55 वर्ष से अधिक को उम्र वाले लोगों में अशक्तता (विकलांगता) का मुख्य कारण है। गठिया रोग भिन्न-भिन्न किस्म का होता है जो कई तरह की तकलीफ देता है। इसके इलाज के विकल्पों में शारीरिक उपचार, रोगग्रस्त अंग का उपचार और चिकित्सा तथा प्रक्रियाएं जैसे कि ऑर्थोप्लास्टी अथवा जोड़ प्रतिस्थापन शल्य चिकित्सा, शामिल हैं। रोगी अच्छा महसूस करे इसके लिए संतुलित आहार, शरीर की सफाई, शारीरिक गतिविधि, पसीना लाना और विश्राम करना जैसे तकनीकों का प्रयोग किया जा सकता हैं।
अस्थिभंजन एक लक्षणहीन बीमारी है जिसमें हड्डियां बिल्कुल भंग हो जाती हैं। यदि इसका इलाज न किया जाए तो यह बिना दर्द तब तक बढ़ती चली जाती है जब तक कि हड्डियां टूट न जाएं। हड्डियों का यह भंजन जो अस्थिभंग के (फ्रेक्चर) के नाम से भी जाना जाता है, विशेष रूप से कूल्हे, रीढ़ की हड्डी और कलाई में होता है। इसमें बहुत दर्द होता है और ठीक होने में काफी समय लग जाता है।
निवारक उपाय
- कैल्शियम और विटामिन डी का निर्धारित मात्रा में प्रतिदिन सेवन करें।
- भार वाली कसरत नियमित रूप से करें।
- धूम्रपान और अल्कोहल के अधिक सेवन से बचें।
- अपनी हड्डियों की स्थिति का पता लगाने के लिए हड्डियों के घनत्व की जांच कराएं।
- शैलबाई अस्पताल, अहमदाबाद
- संचेती संस्थान, पुणे
- जायंट्स इंडिया
- संवेदना पेन अस्पताल
- सर गंगा राम अस्पताल
वरिष्ठ नागरिकों को कई तरह की मानसिक बीमारियों होने का खतरा होता है। इनमें से अवसाद (उदासी) की बीमारी का ख़तरा सबसे ज्यादा है। इस बीमारी के लक्षण इस प्रकार है:
- जिन कार्यों को करने में आपको खुशी होती थी उनमें कोई रुचि न रहना।
- उदासी या बिना वजह रोने लगना, अशांति या खीझ।
- स्मरण शक्ति कमजोर होना, किसी एक चीज पर ध्यान केंद्रित न कर पाना, उलझन अथवा स्थिति।
- मृत्यु अथवा आत्महत्या का विचार।
- खाने पीने और सोने की आदतों में बदलाव।
- लगातार थके रहना, सुस्ती, दर्द और अन्य अस्पष्ट शारीरिक समस्याएं।
स्वास्थ्य संबंधी इन समस्याओं के लक्षण है – उलझन, स्मरण शक्ति कमज़ोर होना और स्थिति-भ्रम। पार्किन्सस और हंटिंगटन तथा उच्च रक्तचाप और आघात इन बीमारियों का कारण होते हैं। जब हृदय, फेफड़े, जैसे अंग, थाइराइड, पिट्युटरी और अन्य ग्रन्थियां ठीक तरह से काम नहीं करती हों मानसिक प्रक्रिया प्रभावित होती है। इससे विक्षिप्तता हो जाती है।
विक्षिप्तता की बीमारी बुढ़ापे में आम तौर पर होने वाली भूलने और उलझन की बीमारी से भिन्न है, जो आसानी से ठीक हो जाती है।
अल्जाइमर धीरे-धीरे पनपने वाला रोग है जो मस्तिष्क के उस भाग में शुरू होता है जो स्मरण-शक्ति को नियंत्रित करता है। जैसा कि यह मस्तिष्क के दूसरे भागों में फैल जाता है इससे बुद्धि, भावों और व्यवहार की क्षमता पर बहुत प्रभाव पड़ता है। इस रोग के कारण ज्ञात नहीं हैं।
इस रोग से बचने का सबसे अच्छा तरीका है स्वयं को मानसिक रूप से व्यस्त रखना। नृत्य, योग और ध्यान लगाने जैसे क्रियाकलापों में भाग लें। किताबें पढ़ें, बोर्ड गेम्स खेलें और अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए अन्य लोगों से बातचीत करें। संतुलित पोषक आहार ले और अल्कोहल और धूम्रपान से बचें। सेहत के लिए खनिज एवं विटामिन की जरुरी खुराक के बारे में डॉक्टर से परामर्श करें। कुछ मामलों में आपको दवाइयां भी दी जा सकती हैं।
कुछ एक विशेष देखभाल केंद्र
- निमहंस
- भारतीय स्वास्थ्य लाभ परिषद
रक्त के परिसंचरण से आपकी शिराओं (रक्त वाहिकाओं) की दीवारों पर जोर पड़ता है उसे रक्तचाप कहते हैं। एक स्वस्थ वयस्क व्यक्ति में इसका एक खास मान लगभग 120/80 है। रक्त चाप के स्तरों में भारी उतार-चढ़ाव खतरनाक हो सकता है इसलिए अच्छा होता है कि आपका रक्तचाप हमेशा नियंत्रण में बना रहे। नियमित रूप से इसकी जाँच, दवाइयों, जीवन-शैली में परिवर्तन और आराम की तकनीकों से ऐसा हो सकता है। यहां कुछ मुख्य उपाय बताए गए हैं जिनका पालन करें।
उच्च रक्तचाप अथवा हाइपरटेंशन
- अपना वज़न सही रखें।
- एक स्वस्थ आहार योजना बनाकर चलें जिसमें जल, सब्जियों, अल्प वसा डेयरी खाद्यों पर जोर दिया जाए।
- अल्कोहल युक्त पेय पदार्थों का कम मात्रा में सेवन करें।
- शारीरिक रूप से सक्रिय बने रहें।
- धूम्रपान न करें।
- खूब पानी पिएं।
- व्यायाम के बाद आराम करें। व्यायाम की दिनचर्या को बीच में छोड़ देने से रक्तचाप गिर सकता है।
- सेहत के लिए लाभदायक रसों (जूस) अथवा अल्कोहल रहित पेय-पदार्थों का सेवन करें।
- नमक का सेवन बढ़ा दें।
- खाना खाने के बाद टहलें। इससे रक्तचाप के सामान्य स्तर पर लाने में मदद मिलती है।
खून की आपूर्ति बंद हो जाने से हृदय की मांसपेशी के संघात के कारण दिल का दौरा पड़ जाता है। ऐसा तब होता है जब एक अथवा एक से अधिक हृदय धमनियों में रुकावट आ जाती है। भारत में, हृदय रोग देश में मृत्यु का एक सबसे बड़ा कारण है। हृदय रोग की ज्यादातर समस्याएं सीधे गलत खान-पान, तनाव और शारीरिक व्यायाम की कमी से जुड़ी हैं।
दिल के दौरे या हृदय की अन्य बीमारियों की रोकथाम के लिए यह जरुरी है कि अपनी जीवन-शैली में परिवर्तन लाएं और एक स्वस्थ जीवन जिंए। नियमित रूप से चिकित्सा जांच कराना भी उतना ही जरुरी है।
हृदय रोगों से मुक्त रहने की कुछ मूल बातें नीचे दी गई है:
- उच्च रक्तचाप और रक्त कोलेस्ट्रोल स्तरों को रोकने अथवा कम करने के लिए संतुलित आहार लें।
- यदि वज़न ज्यादा है तो कम करें।
- धूम्रपान न करें। तनाव से निपटने के लिए कोई और तरीका ढूंढे।
- शारीरिक कार्य करें। उचित व्यायाम, सैर करें, दौड़ लगाएं और योगाभ्यास (किसी कुशल निरीक्षण अथवा मार्गदर्शन में) करें।
- अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान
- एस्कोर्ट हृदय रोग संस्थान एवं अनुसंधान केंद्र
- अपोलो अस्पताल
- नारायणा हृदयालय
- वोकहार्ट हृदयरोग अस्पताल
- श्री जयदेव हृदयरोग विज्ञान कार्डियोलॉजी संस्थान, बैंगलोर
- बीएम बिरला हृदय-रोग अनुसंधान केंद्र
कैंसर सौ से अधिक बीमारियों को समूह का एक सामान्य शब्द है जो शरीर के भिन्न-भिन्न भागों को प्रभावित करता है। आम तौर पर वृद्ध व्यक्तियों को प्रोस्टेट और कोलन और महिलाओं को स्तन का कैंसर होता है। जरा (जैरिएट्रिक) रोगियों में चमड़ी, फेफड़े, पैंक्रियास, मूत्राशय, मलाशय और पेट का कैंसर अन्य कैंसर रोग हैं। सरकार द्वारा कैंसर के विरुद्ध जो मुख्य कदम उठाया गया वह था राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण कार्यक्रम शुरू करना। इस कार्यक्रम का उद्देश्य रोग की प्रारम्भिक रोकथाम और इसका शीघ्र पता लगाना था। कैंसर के इलाज की सुविधाओं की उपलब्धता को बढ़ाने के लिए देश में कई क्षेत्रीय कैंसर केंद्रों की स्थापना की गई हैं।
कैंसर की रोकथाम में मदद के लिए यहां कुछ उपाय सुझाए गए हैं
- धूम्रपान न करें: देर आए दुरुस्त आए।
- संतुलित आहार लें। फलों और सब्जियों की अधिक मात्रा वाला आहार से कई तरह के कैंसर से बचाव होता है।
- नियमित रूप से शारीरिक श्रम करें और अपना वज़न को सही रखें।
- बहुत ज्यादा आयनी विकिरण (आयोनाइजिंग रेडिएशन) से बचें।
- जवाहर लाल नेहरू कैंसर अस्पताल एवं अनुसंधान केंद्र
- गुजरात कैंसर और अनुसंधान संस्थान
- इण्डियन कैंसर सोसायटी
- कैलाश कैंसर अस्पताल और अनुसंधान केंद्र
- एमएनजे आनकॉलोजी संस्थान
- अपोलो कैंसर अस्पताल
- किदवई मेमोरियल आनकॉलोजी संस्थान
- टाटा मेमोरियल अस्पताल
गुर्दे का रोग
कोई भी रोग या विकृति जो गुर्दों के कार्य में बाधा डालता है गुर्दे का रोग होता है। गुर्दे का रोग आनुवांशिक, जन्मजात या अर्जित (एक्वायर्ड) हो सकता है। गुर्दे का पुराना चला आ रहा रोग बुढ़ापे में परेशान करता है और इसमें गुर्दे खराब हो जाने, कार्डियोवैसकुलर रोग होने और मृत्यु होने का बहुत जोखिम होता है।
भारत में हर वर्ष एक बड़ी संख्या में लोगों के गुर्दे खराब हो जाते हैं। अन्य लाखों लोग गुर्दे के अन्य रोगों से पीड़ित होते हैं जो ज्यादा घातक नहीं होते। भारत में गुर्दों की समस्याओं के स्तर को ध्यान में रखते हुए पीड़ित व्यक्तियों द्वारा नेशनल किडनी फाउण्डेशन (इंडिया) नामक एक स्वैच्छिक संगठन स्थापित किया गया है।
गुर्दे के रोग की रोकथाम
- रक्तचाप को नियंत्रण में रखें।
- सही वज़न बनाए रखें।
- वसा (लिपिड) जैसे कि कोलेस्ट्रोल और ट्राइग्लिसाइराइडस का स्तर, सही रखें।
- धूम्रपान न करें अथवा तम्बाकू के किसी उत्पाद का सेवन न करें।
भारत के कुछ खास अस्पताल जहां गुर्दे की रोगों का उपचार किया जाता है
- फोर्टिस अस्पताल और गुर्दा संस्थान
- नेशनल किडनी फाउण्डेशन
- इण्डियन रीनल फाउण्डेशन
अनुमान है कि भारत में हर तीसरे मिनट पर क्षय रोग (टीबी) से दो व्यक्तियों की मृत्यु होती है। इस तरह की मृत्यु को आधुनिक टीबी विरोधी उपचार जैसे कि डायरेक्टली आब्ज़र्व्ड ट्रीटमेंट शार्ट टर्म (प्रत्यक्ष अवलोकित अल्प अवधि उपचार) अथवा डॉट्स के जरिए रोका जा सकता है। यह इलाज एक निर्धारित अवधि तक किया जाना जरुरी है। सरकार ने इस रोग को नियंत्रण करने के लिए आधारभूत ढांचा तैयार करने के लिए राष्ट्रीय क्षय रोग कार्यक्रम शुरू किया है।
क्षय रोग का निवारण
- हाथों को लगातार साफ रखें।विशेष रूप से पुरानी खांसी से पीड़ित लोगों के संपर्क में आने के बाद।
- हर वर्ष क्षय रोग की जांच कराएं। इस तरह की जांच सामुदायिक निदान शालाओं में कम लागत पर उपलब्ध है।
- फेफड़ों में क्षयरोग के नैदानिक लक्षणों का पता लगाने के लिए छाती का एक्स रे किया जा सकता है।
- जब कोई खांस रहा हो तो उसके नज़दीक खड़े नहीं हों।
- फेफड़ों को स्वस्थ रखने के लिए पर्याप्त ताज़ी हवा का सेवन करें।
- विटामिन, खनिज, कैल्शियम, प्रोटीन और रेशे से भरपूर उत्तम आहार लें।
क्षय रोग के इलाज की सुविधा सभी सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य देख-रेख केंद्रों में उपलब्ध है।
मधुमेह:
मधुमेह एक उपापचय संबंधी (मेटाबोलिक) विकृति है जिसमें ब्लड शुगर ज्यादा हो जाता है। यह रोग उस समय होता है जब पेनक्रियास की बीटा कोशिकाओं से पर्याप्त इन्सुलिन नहीं बनता।
मधुमेह को नियंत्रण करने के लिए सुझाव
- प्रतिदिन व्यायाम करें: प्रात:काल सैर, योगाभ्यास, दौड़ और एरोबिक्स रोगी को स्वस्थ बनाए रखते हैं।
- उत्तम आहार लें: भोजन में वसा, कैलोरी और नमक की मात्रा कम रखें। ताज़ी सब्जियां और ताजे फल खाएं। मादक पेय पदार्थों के स्थान पर ताजे फलों को रस और जल का सेवन करें।
- पूरे दिन नियमित समय पर सही आहार और नाश्ते का सेवन करें।
- खाना धीरे-धीरे खाएं। आपके पेट को दिमाग को यह संकेत देने में 20 मिनट का समय लगता है कि आपका पेट भर गया है।
नेत्र:
आंखों की रोशनी चले जाना और मोतियाबिंद जैसे आंखों के रोग और उम्र के साथ आंखों में धुंधलापन आ जाना वृद्धावस्था होने वाले मुख्य नेत्र रोग हैं। सरकार ने नेत्र संबंधी विभिन्न रोगों के उपचार और अंधेपन को रोकने के लिए राष्ट्रीय दृष्टिहीनता नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया है। अपनी नज़र को दुरुस्त बनाए रखने के लिए यहां कुछ उपाय सुझाए गए हैं-
नेत्र रोगों से बचने के उपाय
- नज़र को टिकाकर किए जाने वाले कार्य जैसे कि सिलाई करना अथवा पढ़ना, करते समय 30-30 मिनट के अंतराल पर आंखों को पांच मिनट का आराम दें। अपनी निगाह कार्य से हटा लें।
- नियमित रूप से पलकों को झपकते रहें। इससे लगातार निगाह टिकाने से राहत मिलती है।
- हथेलियों को आंखों पर रखें। आराम से बैठें, गहरा सांस लें और अपनी हथेलियों से आंखों को ढक लें।
- आंखों को सूर्य की सीधी रोशनी और किसी प्रकार के खतरनाक पदार्थों से बचा कर रखें।
भारत के कुछ खास नेत्र अस्पताल
- अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान
- फोर्टिस आई केयर
- शंकर नेत्रालय
- चैतन्य नेत्र अस्पताल एवं अनुसंधान संस्थान
- गुरू नानक नेत्र केंद्र
- अरविंद नेत्र चिकित्सालय
- आई-केयर नेत्र चिकित्सालय
चर्म (त्वचा) रोग
वृद्धावस्था में आमतौर पर होने वाले चर्मरोग स्थैतिकता (स्टेसिस डर्मटाइटिज़) त्वचाशोथ और छिलने वाले त्वचाशोध (एक्सफोलेटिव डर्मटाइटिज़) हैं। स्थैतिकता त्वचाशोध में त्वचा पर लाल चकत्ते हो जाते हैं, सूजन आ जाती है। यह शिराओं में रक्त का प्रवाह ठीक न होने के कारण टांगों के निचले भाग में पानी संचित हो जाने के कारण होती है। इस रोग का उपचार इस प्रकार हैं: टांग को ऊंचा रखना, टांग पर इलास्टिक की पट्टी बांधना और इसकी चिकित्सा कराना।
छिलने वाले त्वचाशोध में त्वचा बहुत छिल जाती है और छिलकर त्वचा गिरती रहती है। त्वचा में खिंचाव महसूस होता है और रोगग्रस्त हिस्से में बाल उड़ जाते हैं। यह रोग दवाइयों के दुष्प्रभाव, श्वेतारक्तता, असाध्य बीमारियों और अन्य रोग-प्रतिरोधी क्षमता कम होने के कारण होता है। इसके उपचारों में पूरी तरह आराम करना, घुनघुने पानी में भिगोना, क्रीम, लोशन लगाना और एंटी हिस्टेमाइंस जैसी बताई गई दवाइयों का प्रयोग करना शामिल है।
खुजली होने पर त्वचा को हल्के से रगड़ने पर कुछ आराम मिलता है। लेकिन ऊपर बताए गए किसी भी रोग की दशा में त्वचा को छीले नहीं। त्वचा के इन रोगों की रोकथाम के लिए नियमित रूप से सनस्क्रीन का प्रयोग करें।